Saturday 30 January 2016

Unbelievable Weight Loss











Unbelievable Weight Loss: Fat Loss With One Teaspoon Of This Powerful Spice

Cumin is a spice native to Egypt that has long been cultivated and enjoyed as a food and medicine in the Middle East, India, China and Mediterranean. It’s used in anything from chilli spices to curry.

Cumin probably isn’t a spice that you use everyday, but it’s time that you do!

This powerful seed can be used to treat indigestion, anemia, acid reflux, diabetes, constipation and so much more.

It’s also been discovered that cumin can even serve as a weight loss aid.

Cumin’s Weight Loss Experiment
As reported in a recent edition of Complementary Therapies in Clinical Practice, researchers at Iran’s Shahid Sadoughi University of Medical Sciences followed a group of 88 overweight and obese women as they underwent a weight loss experiment .

The women were split up into two group: both would follow a reduced calorie diet and receive nutrition counseling but one group would eat yogurt with three grams of cumin daily while the other would eat plain yogurt.

Boosts Metabolism

In as little as three months, the cumin group lost an average of 50% more weight than the plain yogurt group. They also decreased their body fat percentage by 14.64% or almost three times the control group’s loss .

The cumin group also lowered their body mass index and waist circumference significantly more than the control group.

The authors speculated that cumin’s weight loss abilities may be due to the spice temporarily increasing metabolic rate. They even suggested that it could be a viable treatment for metabolic syndrome .

Lowers Blood Fats

Cumin also significantly reduced blood lipid levels. Triglycerides dropped 23 points compared to only five points in the control group. And LDL cholesterol dropped an average of 10 points compared to less than one point for the controls.

This suggest that cumin might help prevent atherosclerosis, heart disease and diabetes, conditions associated to high triglycerides levels.

The researchers believe the cholesterol lowering effect of the spice can be partly attributed to its glycoside saponins (1). These compounds prevent cholesterol absorption and increase its excretion.

The compounds, also found in black cumin, have anti-coagulant, anticarcinogenic, hepatoprotective, hypoglycemic, immunomodulatory, neuroprotective, anti-inflammatory and anti-oxidant properties (4).

Reduces Cholesterol Absorption

Additionally, Cumin contains a substantial amount of phytosterols that may positively modulate lipids by reducing cholesterol absorption .

Another study, published in Annuals of Nutrition and Metabolism found that taking cumin cyminum L. capsule among overweight subjects had the same effects of orlistat120 . Orlistat is a drug that acts as a gastrointestinal lipase inhibitor for obesity management and acts by inhibiting the absorption of dietary fats .

The spice also had similar effects as the drug on weight and BMI and even better effects on insulin metabolism.

If you’re not too keen on eating cumin with yogurt, you can easily add it to roasted vegetables, use it to season chicken or even add a pinch to vegetable soup. You can also mix it with your eggs in the morning!

If you still don’t know where to start, try this cumin tea recipe:

Make a cup of warming and soothing cumin tea by boiling seeds in water and then letting them steep for 8-10 minutes.

अनार के छिलकों का औषधीय महत्व














अनार के छिलकों का औषधीय महत्व

बवासीर (अर्श) : 
• 10 ग्राम अनार के छिलके का चूर्ण बनाकर इसमें 100 ग्राम दही मिलाकर खाने से बवासीर ठीक हो जाती है या अनार के छिलकों का चूर्ण 8 ग्राम, ताजे पानी के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम प्रयोग करें। अनार के छिलकों का चूर्ण नागकेशर के साथ मिलाकर सेवन करने से बवासीर में खून का बहना बंद होता है। अनार का रस पीने से भी बवासीर में लाभ होता है। 

• अतिसार 3-6 ग्राम अनार के जड़ की छाल या अनार के छिलके का चूर्ण शहद के साथ दिन में 3 बार देना चाहिए। इससे अतिसार नष्ट हो जाता है। 

• अनार फल के छिलके के 2-3 ग्राम चूर्ण का सुबह-शाम ताजे पानी के साथ प्रयोग करने से अतिसार तथा आमातिसार में लाभ होता है। 

• अनार का छिलका 20 ग्राम को 1 लीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर रख लें, फिर इसी बने काढ़े को छानकर पीने से अतिसार (दस्त) में खून का आना बंद हो जाता है। 

• अनार के छिलके 50 ग्राम को लगभग 1.2 मिलीलीटर दूध की मात्रा में डालकर धीमी आग पर रख दें, जब दूध 800 मिलीलीटर बच जाये इसे एक दिन में 3 से 4 बार खुराक के रूप में पीने से अतिसार यानी दस्त समाप्त हो जाते हैं। नकसीर अनार के छिलके को छुहारे के पानी के साथ पीसकर लेप करने से सूजन में तथा इसके सूखे महीन चूर्ण को नाक में टपकाने से नकसीर में लाभ होता है। खांसी अनार की सूखी छाल पांच ग्राम बारीक पीसकर कपड़े से छानकर उसमें 0.10 ग्राम कपूर भी मिला लें। यह चूर्ण दिन में 2 बार पानी में मिलाकर पीने से भयंकर बिगड़ी हुई हठीली खांसी भी दूर हो जाती है। 

स्वप्नदोष : 
• अनार के सूखे पीसे हुए छिलके के बारीक चूर्ण को 1 चम्मच की मात्रा में रात को सोने से पहले ठंडे पानी के साथ फंकी के रूप में लेने से सोते समय पुरुष के शिश्न से धातु का आना (स्वप्नदोष) बंद हो जाता है। 

• अनार का पिसा हुआ छिलका 5-5 ग्राम सुबह-शाम पानी से लें। 

• अनार के छिलके का रस शहद के साथ रोजाना सुबह-शाम लेने से स्वप्नदोष दूर हो जाता है। 

अत्यधिक मासिक स्राव : 
• अनार के सूखे छिलके पीसकर छान लें। इस चूर्ण को 1 चम्मच भर की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करने से रक्तस्राव बंद हो जाता है। 

• शरीर के किसी भी भाग से खून निकल रहा हो, उसे रोकने में भी इस विधि का उपयोग किया जा सकता है। 

• अनार के थोड़े से छिलकों को सुखा लेते हैं। फिर उसका चूर्ण बनाकर शीशी में भरकर रखें, फिर इसमें से एक चम्मच चूर्ण खाकर ऊपर से पानी पीने से बार-बार खून आने की शिकायत दूर हो जाती है। 

विविध 
 सूखे अनार के छिलकों का चूर्ण दिन में ३-४ बार एक – एक चम्मच ताजा पानी के साथ लेने से बार बार पेशाब आने की समस्या ठीक हो जाती है, अनार के छिलकों को पानी में उबाल कर उससे कुल्ला करने से श्वास की बदबू समाप्त हो जाती है, खांसी में अनार के छिलके को मुँह में रखकर धीरे धीरे ३-४ बार चूसते रहने से लाभ मिलता है अनार के छिलकों के एक चम्मच चूर्ण को कच्चे दूध और गुलाब जल में मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरा दमक उठता है। आधा चम्मच अनार के छिलकों के बारीक चूर्ण को शहद के साथ चाटने से लाभ होता है।

Friday 29 January 2016

बवासीर-फिस्टुला का घरेलू उपचार


















बवासीर-फिस्टुला का घरेलू उपचार 

आज लोगों का खान-पान पूरी तरह पश्चिमी सभ्यता पर आधारित हो गया है। लोग तेल, मिर्च, मसाला, तली, भूनी चीजें, फास्ट फूड, अनियमित भोजन का अधिक सेवन करते हैं। खाने में हरी सब्जियां, सलाद, पौष्टिक आहार का सेवन कम कर रहे हैं। व्यायाम, परिश्रम आदि से लोग दूर भाग रहे हैं जिसके कारण लोग मोटापे का शिकार हो रहे हैं। उपरोक्त निदान अनियमित आहार-विहार सेवन के कारण लोग एक जटिल बीमारी भगंदर का शिकार हो रहे हैं।

बवासीर दो प्रकार की होती है:-
खूनी बवासीर :-
जब गुदा के अंदर की बवासीर से खून निकलता है तो इसे खूनी बवासीर कहते हैं-

बादी बवासीर :-
बाहर की ओर फूले हुए मस्से की बवासीर में दर्द तो होता है लेकिन उनसे खून नहीं निकलता है इसलिए इसे बादी-बवासीर कहते हैं-

घरेलू उपचार (Home remedies ):-
1-25 ग्राम अनार के ताजे, कोमल पत्ते 300 ग्राम पानी में देर तक उबालें। जब आधा जल शेष रह जाए तो उस जल को छानकर भगंदर को धोने से बहुत लाभ होता है।

2-नीम के पत्तों को जल में उबालकर, छानकर भगंदर को दिन में दो बार अवष्य साफ करें।तथा नीम की पत्तियों को पीसकर भगंदर पर लेप करने से बहुत लाभ होता है।

3-काली मिर्च और खदिर (लाजवंती) को जल के छींटे मारकर पीसकर भगंदर पर लेप करें।

4-लहसुन को पीसकर, घी में भूनकर भंगदर पर बांधने से जीवाणु नष्ट होते हैं।

5-आक के दूध में रुई भिगोकर सुखाकर रखें। इस रुई को सरसों के तेल के 
साथ भिगोकर काजल बनाएं काजल मिट्टी के पात्र पर बनाएं। इस काजल को भगंदर पर लगाने से बहुत लाभ होता है। या आक का दूध और हल्दी मिलाकर उसको पीसकर शुष्क होने पर बत्ती बना लें। इस बत्ती को भगंदर के व्रण पर लगाने से बहुत लाभ होता है।

6-चमेली के पत्ते, गिलोय, सोंठ और सेंधा नमक को कूट-पीसकर तक्र (मट्ठा) मिलाकर भंगदर पर लेप करें।

7-त्रिफला क्वाथ से नियमित भगंदर के व्रण को धोकर बिल्ली अथवा कुत्ते की हड्डी के महीन चूर्ण का लेप कर देने से भगंदर ठीक हो जाता है |

8-रोगी को किशोर गूगल, कांचनार गूगल एवं आरोग्यवर्द्धिनी वटी की दो दो गोली दिन में तीन बार गर्म पानी के साथ करने पर उत्तम लाभ होता है नियमित दो माह तक इसका प्रयोग करने से भगंदर ठीक हो जाता है |

9-भगंदर के रोगी को भोजन के बाद विंडगारिष्ट, अभयारिस्ट एवं खादिरारिष्ट 20-20 मिली. की मात्रा में सामान जल मिलाकर सेवन करना चाहिए |

10 - -कलमी शोरा (saltpeter ) और रसोंत (Rsot ) को आपस में बराबर मात्रा लेकर मूली के रस में मिला कर पीस लें-यह पेस्ट बवासीर के मस्सो पर लगाने से तुरंत राहत मिलती है।

11-नागकेशर (Cobras saffron) मिश्री (sugar-candy ) और ताजा मक्खन (Fresh butter ) बराबर की मात्रा में मिलाकर खाने से बवासीर रोग नियंत्रण में आ जाता है ।

12-बवासीर में छाछ पीना भी अमृत की तरह है छाछ (Buttermilk ) में थोडा सा सैंधा नमक (Rock salt ) मिलाकर पीना चाहिए | तथा मूली का नियमित रूप से सेवन करे -मूली का प्रयोग बवासीर में लाभदायक है |

13- हरड (Myrrh ) और गुड (Molasses ) को आपस में मिलाकर खाए इससे भी काफी फायदा होता है |

14-मिश्री और कमल का हरा पत्ता (Lotus leaf green ) आपस में पीस के खाने से बवासीर का खून बंद हो जाता है |

15-बाजार में मिलने वाले जिमीकंद (Jminkand ) को आग में भून ले जब भुरभुरा हो जाए तब दही के साथ मिलाकर सेवन करे |

16-गेंदे के हरे पत्ते 10 ग्राम,काली मिर्च के 5 दाने मिश्री 10 ग्राम सबको 50 मिली पानी में पीस कर मिला दें | ऐसा मिश्रण चार दिन तक लेते रहने से खूनी बवासीर खत्म हो जाती है |

17-कडवी तोरई ( Bitter Luffa ) की जड को पीसकर यह पेस्ट मस्से पर लगाने से लाभ होता है।

18-करंज- हरसिंगार- बबूल- जामुन- बकायन- ईमली (Krnj- Hrsingar- Bbul- Jamun- Bkayn-tamarind ) इन छ: की बीजों की गिरी और काली मिर्च (black pepper ) इन सभी चीजों को बराबर मात्रा में लेकर कूट पीसकर मटर के दाने के बराबर गोलियां बनालें। 2 गोली दिन में दो बार छाछ के साथ लेने से बवासीर में अचूक लाभ होता है।

19-चिरायता-सोंठ-दारूहल्दी-नागकेशर-लाल चन्दन-खिरेंटी (Salicylic-ginger-Daruhldi-cobras saffron-red sandal-Kirenti ) इन सबको समान मात्रा मे लेकर चूर्ण बनालें। 5ग्राम चूर्ण दही के साथ लेने से पाईल्स ठीक होंगा |

20-पके केले को बीच से चीरकर दो टुकडे कर लें और उसपर कत्था पीसकर छिडक दें,इसके बाद उस केले को खुली जगह पर शाम को रख दें,सुबह शौच से निवृत्त होने के बाद उस केले को खालें, केवल 15 दिन तक यह उपचार करने से भयंकर से भयंकर बवासीर समाप्त हो जाती है।

21-हर-सिंगार के फ़ूल तीन ग्राम काली मिर्च एक ग्राम और पीपल एक ग्राम सभी को पीसकर उसका चूर्ण तीस ग्राम शकर की चासनी में मिला लें,रात को सोते समय पांच छ: दिन तक इसे खायें। इस उपचार से खूनी बवासीर में आशातीत लाभ होता है। कब्ज करने वाले भोजन पदार्थ वर्जित हैं।

22-प्याज के छोटे छोटे टुकडे करने के बाद सुखालें,सूखे टुकडे दस ग्राम घी में तलें,बाद में एक ग्राम तिल और बीस ग्राम मिश्री मिलाकर रोजाना खाने से बवासीर का नाश होता है| या बवासीर की समस्या हो तो प्याज के 4-5 चम्मच रस में मिश्री और पानी मिलाकर नियमित रूप से लें, खून आना बंद हो जाएगा। प्याज के स्वास्थ लाभ के लिए देखे -

23-बिदारीकंद और पीपल समान भाग लेकर चूर्ण बनालें। 3 ग्राम चूर्ण बकरी के दूध के साथ पियें।

24-आक के पत्ते और तम्बाखू के पत्ते गीले कपडे मे लपेटकर गरम राख में रखकर सेक लें। फ़िर इन पत्तों को निचोडने से जो रस निकले उसे मस्सों पर लगाने से मस्से समाप्त होते हैं।

25-एक नीबू लेकर उसे काट लें,और दोनो फ़ांकों पर पांच ग्राम कत्था पीस कर छिडक दें, खुली जगह पर रात भर रहने दें,सुबह बासी मुंह दोनो फ़ांकों को चूस लें,कैसी भी खूनी बबासीर दो या तीन हफ़्तों में ठीक हो जायेगी।
एक आसान प्रयोग ::

--सूखे नारियल की जटा, जिससे रस्सी, चटाई आदि बनाते हैं। इस भूरे जटा को जलाकर राख बना लें और इसे अच्छी तरह छान लें। इस छनी हुई जटा-भष्म में तीन चम्मच निकालें और एक-एक चम्मच की पुड़िया बनाएं।एक पुड़िया जटा-भष्म को मीठे दही या छाछ(जो खट्टा नहीं हो) में मिलाकर एकबार ले लें। बादी-ववासीर जड़-मूल से नष्ट हो जाएगा। जरूरत पड़े तो दोबारा भी इस्तेमाल किया जा सकता है। वैसे दुबारा इस्तेमाल की जरूरत नहीं पड़ती है।

होमियो-पेथी से इलाज :-
होमियोपैथी की मदर-टिंचर हेमेमिलिस और बायो-काम्बिनेशन नम्बर सत्रह की पाँच-पाँच बूंद हेमेमिलिस आधा कप पानी में मिला कर दिन में तीन बार और बायो-काम्बिनेशन सत्रह की चार-चार गोलियाँ तीन बार लेने से खूनी और साधारण बवासीर ठीक हो जाती है।

परहेज (Avoiding ):-
घी, तेल से बने पकवानों का सेवन न करें।उष्ण मिर्च-मसाले व अम्लीय रसों से निर्मित खाद्य पदार्थो का सेवन न करें। ऊंट, घोडे, व स्कूटर, साईकिल पर लम्बी यात्रा न करें।

अधिक समय कुर्सी पर बैठकर काम न करें।दूषित जल से स्नान न करें।
भंगदर रोग के चलते समलेंगिक सहवास से अलग रहे।

बाजार के चटपटे-स्वादिष्ट छोले-भठूरे-समोसे-कचौड़ी-चाट-पकौड़ी आदि का सेवन न करें।

कपालभाती प्राणायाम : विधि और लाभ




























कपालभाती प्राणायाम : विधि और लाभ

Obesity या मोटापा यह आज के आधुनिक समाज के लिए सबसे गंभीर समस्या बन चुकी है। मोटापा अपने साथ कई अन्य भयावह बीमारियो को लेकर आता है। लोग मोटापा दूर करने के लिए कई तरह की चीजो का इस्तेमाल करते नजर आते है। अकसर देखा जाता है की हजारो रुपये खर्च कर भी लोग अपना मोटापा कम नहीं कर पाते है और बजाए weight loss करने के हानिकारक दवाओ के कारण उनके Liver पर विपरीत परिणाम होता है।

स्वस्थ और निरोगी रहने के लिए योग और प्राणायाम से अच्छा कोई विकल्प नहीं है। योग और प्राणायाम की मदद से आप अत्यंत कम खर्च और समय में weight loss कर सुखी जीवन व्यतीत कर सकते है। Weight Loss करने के लिए संतुलित आहार-विहार के साथ अगर योग और प्राणायम को जोड़ा जाए तो weight loss आसानी से किया जा सकता है।
Weight loss करने के लिए कपालभाती प्राणायम का उपयोग किया जाता है। प्राणायम की मदद से आसानी से Weight loss किया जाए सकता है। कपालभाती संबंधी अधिक जानकारी निचे दी गयी है :

कपालभाती

परिचय / Introduction
'कपालभाती' यह एक संस्कृत शब्द है। 'कपाल' का मतलब होता है माथा / Forehead और 'भाती' का मतलब होता है प्रकाश / Light। रोज नियमित कपालभाती करने से व्यक्ति का माथा / चेहरे पर कांती या चमक आती है। चेहरे पर चमक होना स्वस्थ और निरोगी व्यक्ति की पहचान होती है। कपालभाती यह एक प्राणायाम का चमत्कारी प्रकार है जिसके कई सारे फायदे है।

विधि / Procedure
एक समान, सपाट और स्वच्छ जगह जहा पर स्वस्छ हवा हो वहा पर कपड़ा बिछाकर बैठ जाए।

आप सिद्धासन, पदमासन या वज्रासन में बैठ सकते है। आप चाहे तो आपको जो आसन आसान लगे या आप हमेशा जैसे निचे जमीन पर बैठते है उस तरह बैठ जाए। 

बैठने के बाद अपने पेट को ढीला छोड़ दे। 

अब अपने नाक से सांस को बाहर छोड़ने की क्रिया करे। सांस को बाहर छोड़ते समय पेट को अंदर की ओर धक्का दे। 

श्वास अंदर लेने की क्रिया करने की जरुरत नहीं है। इस क्रिया में श्वास अपने आप अंदर लिया जाता है। 

लगातार जितने समय तक आप आसानी से कर सकते है तब तक नाक से श्वास बाहर छोड़ने और पेट को अंदर धक्का देने की क्रिया को करते रहे। 
शुरुआत में 10 बार और धीरे धीरे बढ़ाते हुए एक बार में 60 बार तक यह क्रिया करे। 

आप चाहे तो बीच में कुछ समय का आराम लेकर भी इस क्रिया को कर सकते है।

सावधानिया / Precautions 
कपालभाती सुबह के समय खाली पेट, पेट साफ़ होने के बाद ही करे। 
अगर खाना खाने के बाद कपालभाती करना है तो खाने के 5 घंटे बाद इसे करे। 

कपालभाती करने के बाद 30 मिनिट तक कुछ न खाए। आप चाहे तो थोड़ा पानी ले सकते है। 

शुरुआत में कपालभाती किसी योगा के जानकार के देखरेख में ही करे। 
गर्भवती महिला, Gastric ulcer, Epilepsy, Hernia के रोगी इस क्रिया को न करे। 

Hypertension / उच्चरक्तचाप और ह्रदय रोगी अपने डॉक्टर की सलाह लेकर हे इस क्रिया को करे। 

ऐसे तो कपालभाती क्रिया के कोई दुष्परिणाम / side-effects नहीं है फिर भी कपालभाती करते वक्त चक्कर आना या जी मचलाना जैसी कोई परेशानी होने पर अपने डॉक्टर से संपर्क करे।

लाभ / Benefits 
वजन कम / weight loss होता है। भारत में ऐसे कई लोग है जिन्होंने कपालभाती से अपना 30 से 40 किलो वजन काम किया है। 

पेट की बढ़ी हुई अतिरिक्त चर्बी कम होने में सहायक है। यह आपके कमर के आकार को फिर से सामान्य आकार में लाने में मदद करता है। 

चेहरे की झुर्रिया और आँखों के निचे का कालापन दूर कर चेहरे की चमक फिर से लौटाने में मदद करता है। 

गैस, कब्ज और अम्लपित्त / Acidity की समस्या को दूर भगाता है। 
शरीर और मन के सारे नकारात्मक तत्व और विचारो को मिटा देता है। 

शरीर को detox करता है। 

स्मरणशक्ति को बढ़ाता है। 

कफ विकार नष्ट होते है और श्वासनली की सफाई अच्छे से होती है। 
इस क्रिया से रक्त धमनी की कार्यक्षमता बढाती है और बढ़ा हुआ cholesterol को काम करने में मदद होती है। 

कपालभाती करने वक्त पसीना अधिक आता है जिससे शरीर स्वच्छ होता है।

कपालभाती के weight loss के अलावा भी कई अन्य महत्वपूर्ण फायदे से अब तक आप परिचित हो चुके है। आज से ही weight loss करने के लिए संतुलित आहार-विहार और व्यायाम के साथ इसे अपने दिनचर्या का हिस्सा बनाकर स्वस्थ और निरोगी जीवन जीने की तरफ अपना कदम बढ़ाए।

जिन लोगो का वजन सामान्य या controlled है वह भी कपालभाती के अन्य लाभ के लिए इस क्रिया को कर सकते है।

अनुलोम-विलोम प्राणायाम












अनुलोम-विलोम प्राणायाम

अनुलोम का अर्थ होता है सीधा और विलोम का अर्थ है उल्टा। यहां पर सीधा का अर्थ है नासिका या नाक का दाहिना छिद्र और उल्टा का अर्थ है-नाक का बायां छिद्र। अर्थात अनुलोम-विलोम प्राणायाम में नाक के दाएं छिद्र से सांस खींचते हैं, तो बायीं नाक के छिद्र से सांस बाहर निकालते है। इसी तरह यदि नाक के बाएं छिद्र से सांस खींचते है, तो नाक के दाहिने छिद्र से सांस को बाहर निकालते है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम को कुछ योगीगण 'नाड़ी शोधक प्राणायाम' भी कहते है। उनके अनुसार इसके नियमित अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शोधन होता है यानी वे स्वच्छ व निरोग बनी रहती है। इस प्राणायाम के अभ्यासी को वृद्धावस्था में भी गठिया, जोड़ों का दर्द व सूजन आदि शिकायतें नहीं होतीं।

विधि
- अपनी सुविधानुसार पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन अथवा सुखासन में बैठ जाएं। दाहिने हाथ के अंगूठे से नासिका के दाएं छिद्र को बंद कर लें और नासिका के बाएं छिद्र से 4 तक की गिनती में सांस को भरे और फिर बायीं नासिका को अंगूठे के बगल वाली दो अंगुलियों से बंद कर दें। तत्पश्चात दाहिनी नासिका से अंगूठे को हटा दें और दायीं नासिका से सांस को बाहर निकालें।

- अब दायीं नासिका से ही सांस को 4 की गिनती तक भरे और दायीं नाक को बंद करके बायीं नासिका खोलकर सांस को 8 की गिनती में बाहर निकालें।

- इस प्राणायाम को 5 से 15 मिनट तक कर सकते है।

लाभ

- फेफड़े शक्तिशाली होते है।

- सर्दी, जुकाम व दमा की शिकायतों से काफी हद तक बचाव होता है।

- हृदय बलवान होता है।

सावधानियां
- कमजोर और एनीमिया से पीड़ित रोगी इस प्राणायाम के दौरान सांस भरने और सांस निकालने (रेचक) की गिनती को क्रमश: चार-चार ही रखें। अर्थात चार गिनती में सांस का भरना तो चार गिनती में ही सांस को बाहर निकालना है।

- स्वस्थ रोगी धीरे-धीरे यथाशक्ति पूरक-रेचक की संख्या बढ़ा सकते है।

- कुछ लोग समयाभाव के कारण सांस भरने और सांस निकालने का अनुपात 1:2 नहीं रखते। वे बहुत तेजी से और जल्दी-जल्दी सांस भरते और निकालते है। इससे वातावरण में व्याप्त धूल, धुआं, जीवाणु और वायरस, सांस नली में पहुंचकर अनेक प्रकार के संक्रमण को पैदा कर सकते है।

- अनुलोम-विलोम प्राणायाम करते समय यदि नासिका के सामने आटे जैसी महीन वस्तु रख दी जाए, तो पूरक व रेचक करते समय वह न अंदर जाए और न अपने स्थान से उड़े। अर्थात सांस की गति इतनी सहज होनी चाहिए कि इस प्राणायाम को करते समय स्वयं को भी आवाज न सुनायी पड़े।

कैसे करे संपादित करें
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। शुरुवात और अन्त भी हमेशा बाये नथुने (नोस्टील) से ही करनी है, नाक का दाया नथुना बंद करें व बाये से लंबी सांस लें, फिर बाये को बंद करके, दाया वाले से लंबी सांस छोडें...

अब दाया से लंबी सांस लें व बाये वाले से छोडें...याने यह दाया-दाया बाया-बाया यह क्रम रखना, यह प्रक्रिया १०-१५ मिनट तक दुहराएं| सास लेते समय अपना ध्यान दोनो आँखो के बीच मे स्थित आज्ञा चक्र पर ध्यान एकत्रित करना चाहिए| और मन ही मन मे सांस लेते समय ओउम-ओउम का जाप करते रहना चाहिए|हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सुक्ष्म नाडी शुद्ध हो जाती है। बायी नाडी को चन्द्र (इडा, गन्गा) नाडी, और बायी नाडी को सूर्य (पीन्गला, यमुना) नाडी केहते है। चन्द्र नाडी से थण्डी हवा अन्दर जती है और सूर्य नाडी से गरम नाडी हवा अन्दर जती है।थण्डी और गरम हवा के उपयोग से हमारे शरीर का तापमान संतुलित रेहता है। इससे हमारी रोग-प्रतिकारक शक्ती बढ जाती है।

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें।

शुरुवात और अन्त भी हमेशा बाये नथुने (नोस्टील) से ही करनी है।

नाक का दाया नथुना बंद करें व बाये से लंबी सांस लें।

फिर बाये को बंद करके, दाया वाले से लंबी सांस छोडें...

अब दाया से लंबी सांस लें व बाये वाले से छोडें...

याने यह दाया-दाया बाया-बाया यह क्रम रखना, यह प्रक्रिया १०-१५ मिनट तक दुहराएं|

सावाधानी संपादित करें
सास लेते समय अपना ध्यान दोनो आँखो के बीच मे स्थित आज्ञा चक्र पर ध्यान एकत्रित करना चाहिए|

मन ही मन मे सांस लेते समय ओउम-ओउम का जाप करते रहना चाहिए|
बायी नाडी को चन्द्र (इडा, गन्गा) नाडी, और दायी नाडी को सूर्य (पीन्गला, यमुना) नाडी केहते है।

चन्द्र नाडी से थण्डी हवा अन्दर जती है और सूर्य नाडी से गरम नाडी हवा अन्दर जती है।

फयादे संपादित करें
हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सुक्ष्म नाडी शुद्ध हो जाती है।
हार्ट की ब्लाँकेज खुल जाते है।

हाय, लो दोन्हो रक्त चाप ठिक हो जायेंगे|

आर्थराटीस, रोमेटोर आर्थराटीस, कार्टीलेज घीसना ऐसी बीमारीओंको ठीक हो जाती है।

टेढे लीगामेंटस सीधे हो जायेंगे|

व्हेरीकोज व्हेनस ठीक हो जाती है।

कोलेस्टाँल, टाँक्सीनस, आँस्कीडण्टस इसके जैसे विजतीय पदार्थ शरीर के बहार नीकल जाते है।

सायकीक पेंशनट्स को फायदा होता है।
कीडनी नँचरली स्वछ होती है, डायलेसीस करने की जरुरत नही पडती|

सबसे बडा खतरनाक कँन्सर तक ठीक हो जाता है।

सभी प्रकारकी अँलार्जीयाँ मीट जाती है।

मेमरी बढाने की लीये|

सर्दी, खाँसी, नाक, गला ठीक हो जाता है।

ब्रेन ट्युमर भी ठीक हो जाता है।

सभी प्रकार के चर्म समस्या मीट जाती है।

मस्तिषक के सम्बधित सभि व्याधिओको मीटा ने के लिये|

पर्किनसन, प्यारालेसिस, लुलापन इत्यादी स्नयुओ के सम्बधित सभि व्याधिओको मीटा ने के लिये|

सायनस की व्याधि मीट जाती है।

डायबीटीस पुरी तरह मीट जाती है।

टाँन्सीलस की व्याधि मीट जाती है।

थण्डी और गरम हवा के उपयोग से हमारे शरीर का तापमान संतुलित रेहता है।

इससे हमारी रोग-प्रतिकारक शक्ती बढ जाती है।

दांतों में कीड़े लगना













दांतों में कीड़े लगना :-

यह एक आम समस्या है,खासतौर पर बच्चों में यह कष्ट अधिक देखने को मिलता है | दांतों की नियमित सफाई न करने से दांतों के बीच में अन्न कण फंसे रहते हैं और इन्ही अन्न कणों के सड़ने की वजह से दांतों में कीड़े लग जाते हैं जिससे दांतों की जड़ें कमजोर हो जाती हैं | इसी कारण दांत खोखले हो जाते हैं,मसूड़े ढीले पड़ जाते हैं तथा दांत टूटकर गिरने लगते हैं | दांतों की नियमित सफाई करके इस समस्या से बचा जा सकता है | इस रोग में दांतों में तेज़ दर्द होता है और मसूड़े सूज जाते हैं | दांतों में कीड़े लगने पर कुछ घरेलू उपचारों द्वारा आराम पाया जा सकता है -

१- दालचीनी का तेल रूई में भरकर पीड़ायुक्त दांत के गढ्ढे में रखकर दबा लें | इससे दांत के कीड़े नष्ट होते हैं और दर्द में शांति मिलती है |

२- फिटकरी गर्म पानी में घोलकर प्रतिदिन कुल्ला करने से दांतों के कीड़े और बदबू ख़त्म हो जाती है |

३- कीड़े युक्त या सड़े हुए दांतों में बरगद (बड़) का दूध लगाने से कीड़े और पीड़ा दूर होती है |

४- हींग को थोड़ा गर्म करके कीड़े लगे दांतों के नीचे दबाकर रखने से दांत व मसूड़ों के कीड़े मर जाते हैं |

५- पिसी हुई हल्दी और नमक को सरसों के तेल में मिला लें | इसे प्रतिदिन २-४ बार दांतों पर मंजन की तरह मलने से दांतों के कीड़े मर जाते हैं |

६- कीड़े लगे दांतों के खोखले भाग में लौंग का तेल रुई में भिगोकर रखने से भी दांत के कीड़े नष्ट होते हैं |

७- दांत में कीड़े लगने से दांत खोखले हो जाते हैं तथा जगह-जगह गढ्ढे बन जाते हैं | फिटकरी,सेंधानमक,तथा नौसादर बराबर मात्रा में लेकर बारीक पाउडर बना लें | इसे प्रतिदिन सुबह-शाम दांत व मसूड़ों पर मलने से दांतों के सभी रोग ठीक होते हैं |

‎ताड़ासन‬












‎ताड़ासन‬

ताड़ासान योग की ही एक क्रिया है। ताड़ासन जैसा की नाम से ही विदित है ताड़ के पेड़ के समान। ताड़ासन एक ऐसी स्थिति हैं जब आपका शरीर ताड़ के पेड़ की तरह सीधा खड़ा होता है। इसी स्थिति को ‪#‎योग‬ में ताड़ासन कहा जाता है।

ताड़ासन करने की विधि
हाथों को ऊपर ले जाकर हथेलियों को मिलाएं और हथेलियां आसमान की तरफ होनी चाहिए। ऐसी स्थिति में दोनों हाथों की अंगुलियां भी आपस में मिली होनी चाहिए। ताड़ासन के दौरान कमर सीधी और नजरें भी सामने की तरफ और गर्दन सीधी होती हैं और शरीर का पूरा भार पंजों पर आ जाता हैं और पूरे शरीर की ताकत शरीर को एक तरफ खींचने में लगती हैं। ताड़ासन जब भी करें तो ध्यान रखें कि आपके आसपास की जगह खुली हो, आप चाहे तो पार्क में भी इस आसन को आराम से कर सकते हैं। 

ताड़ासन की स्थिति में लंबी सांस भरकर कम से कम 1 से 2 मिनट तक रूकना चाहिए और धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आना चाहिए। फिर कुछ सेकेंड रूककर दोबारा इसी क्रिया को दोहराना चाहिए।

ताड़ासन के दौरान सावधानियां
ताड़ासन के दौरान बहुत सावधानी बरतनी होती है। आपको बॉडी बैलेंस के साथ ही यह भी ध्यान रखना होता है कि आपके हाथ धीरे-धीरे ऊपर की ओर जा रहे हैं तो आपकी एडियां भी उसी रफ्तार से ऊपर की ओर उठेंगी। हाथ और पैरों को उठाते हुए आपका पेट अंदर की ओर जाना चाहिए जिससे आपका बैलेंस अच्छी तरह से बन जाएं। ताड़ासन करने से पहले आपको अपने डॉक्टर या फिर योग विशेषज्ञ से सलाह ले लेनी चाहिए क्यों कि यदि आपके पैरों में कोई समस्या है तो आपको ताड़ासन करने से बचना चाहिए।

ताड़ासन के लाभ
ताड़ासन के बहुत लाभ हैं, जिन बच्चों की हाईट कम होती हैं उनके लिए ताड़ासन बहुत ही लाभदायक आसन हैं। यदि आपके पैरों या पंजों में बहुत दर्द रहता है तो आपको चाहिए कि आप ताड़ासन करना चाहिए, इससे आपके पैरों में मजबूती आएगी और पंजों में भी दर्द नहीं होगा। यदि आपका पाचन तंत्र कमजोर है या फिर आपको पेट संबंधी समस्याएं होती हैं तो आपको ताड़ासन करना चाहिए इससे आप स्वस्थ रहेंगे।

ताड़ासन से आप हष्ट-पुष्ट और सुडौल बनते हैं।

घरेलू नुस्खे


















घरेलू नुस्खे

हमारे घर की रसोई औषधियों का खजाना है। कई घरेलू चीजें ऐसी हैं जिनका उपयोग करके हम छोटी-मोटी हेल्थ प्रॉब्लम्स को आसानी से ठीक कर सकते हैं। बस जरूरत है तो किचन में या हमारे आसपास उपस्थित इन चीजों के गुणों व उपयोगों की सही जानकारी की। हमारे पूर्वज प्राचीन समय से ही घरेलू चीजों का उपयोग इलाज के लिए करते आए है। चलिए आज जानते हैं कुछ ऐसे ही प्राचीन समय से घरेलू नुस्खों के बारे में जो कि दोहों के रूप में हैं.....

1. मक्खन में थोड़ा सा केसर मिलाकर रोजाना लगाने से काले होंठ भी गुलाबी होने लगते हैं।

2. मुंह की बदबू से परेशान हों तो दालचीनी का टुकड़ा मुंह में रखें। मुंह की बदबू तुरंत दूर हो जाती है।

3. लहसुन के तेल में थोड़ी हींग और अजवाइन डालकर पकाकर लगाने से जोड़ों का दर्द दूर हो जाता है।

4. लाल टमाटर और खीरा के साथ करेले का जूस लेने से मधुमेह दूर रहता है

5. अजवाइन को पीसकर उसका गाढ़ा लेप लगाने से सभी तरह के चमड़ी के रोग दूर हो जाते हैं।

6. ऐलोवेरा और आंवला का जूस मिलाकर पीने से खून साफ होता है और पेट की सभी बीमारियां दूर होती हैं।

7. बीस ग्राम अांवला और एक ग्राम हल्दी मिलाकर लेने से सर्दी और कफ की तकलीफ में तुरंत आराम होता है

8. शहद आंवले का जूस और मिश्री सभी दस - दस ग्राम मात्रा में लेकर बीस ग्राम घी के साथ मिलाकर लेने से यौवन हमेशा बना रहता है।

9. अजवाइन को पीसकर और उसमें नींबू का रस मिलाकर लगाने से फोड़े-फुंसी दूर हो जाते हैं।

10. बहती नाक से परेशान हों तो युकेलिप्टस का तेल रूमाल में डालकर सूंघे। आराम मिलेगा।

11. बीस मिलीग्राम आंवले के रस में पांच ग्राम शहद मिलाकर चाटने से आंखों की ज्योति बढ़ती है।

12. रोज सुबह खाली पेट दस तुलसी के पत्तों का सेवन करने से शरीर स्वस्थ रहता है।

13. यदि आप कफ से पीड़ित हों और खांसी बहुत परेशान कर रही हो तो अजवाइन की भाप लें। कफ बाहर हो जाएगा।

14. अदरक का रस और शहद समान मात्रा में मिलाकर लेने से सर्दी दूर हो जाती है

15. थोड़ा सा गुड़ लेने से कई तरह के रोग दूर होते हैं, लेकिन इसे ज्यादा नहीं खाना चाहिए चाहे ये कितना ही अच्छा लगता हो।

16. रोज खाने के बाद छाछ पीने से कोई रोग नहीं होता है और चेहरे पर लालिमा आती है।

17. छाछ में हींग, सेंधा नमक व जीरा डालकर पीने से हर तरह के रोग दूर हो जाते हैं।

18. नीम के सात पत्ते खाली पेट चबाने से डायबिटीज दूर हो जाती है।

19. 20 ग्राम गाजर के रस में 40 ग्राम आंवला रस मिलाकर पीने से ब्लड प्रेशर और दिल के रोगों में अाराम मिलता है।

20. बेसन में थोड़ा सा नींबू का रस, शहद और पानी मिलाकर लेप बनाकर लगाने से चेहरा सुंदर और आकर्षक लगता है।

21. चौलाई और पालक की सब्जी भरपूर मात्रा में खाने से जवानी हमेशा बनी रहती है।

22. शहद का सेवन करने से गले की सभी समस्याएं दूर होती हैं और आवाज मधुर होती
है।

23. सर्दी लग जाए तो गुनगुना पानी पिएं। राहत मिल जाएगी।

24. छाछ में पांच ग्राम अजवाइन का चूर्ण मिलाकर लेने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

25. सुबह- शाम खाली पेट जामुन की गुठली का रस पीने से डायबिटीज में आराम मिलता है।

26. पित्त बढ़ने पर घृतकुमारी और आंवले का रस मिलाकर पिएं। राहत मिलेगी।

27. दालचीनी का पाउडर पानी के साथ लेने पर दस्त में आराम हो जाता है।

28. गुड़ में थोड़ी अजवाइन मिलाकर लेने से एसिडिटी में राहत मिलती है।

मलाई का उपयोग














मलाई का उपयोग :-

जरूरी नहीं कि सर्दी में ही होठों पर पपड़ी और चेहरे पर खुश्की आती हो। गर्मियों में भी पानी की कमी से होठों में रूखापन आ जाता है तथा होंठ फटे फ़टे हो जातें हैं। क्रीम आदि तो आप हमेशा ही ट्राय करती आई हैं, लेकिन कभी घर में हमेशा उपलब्ध रहने वाली उपयोगी क्रीम यानी मलाई पर भी नजर डाल लें। मलाई का कुछ इस तरह भी प्रयोग किया जा सकता है।

एक चम्मच मलाई में नींबू का रस मिलाकर प्रतिदिन चेहरे और होंठ पर लगाने से ये फटते नहीं हैं।

थोड़ी-सी मलाई और एक चम्मच बेसन का उबटन साबुन का बेहतरीन विकल्प है। इससे त्वचा मुलायम होती है।

मुल्तानी मिट्टी को पीसकर, मलाई में मिलाकर चेहरे तथा कोहनियों पर लगाने से रंग में निखार आता है।

तीन चार बादाम और दस-बारह देशी गुलाब की पत्तियां पीसकर उसमें एक चम्मच मलाई मिलाकर चेहरे पर लगायें । इससे चेहरे की झुर्रियां और त्वचा के धब्बे दूर हो जाते हैं।

मलाई में समुद्र फेन का बारीक पाउडर मिलाकर लगाने से मुंहासे ठीक हो जाते हैं।

मौसंबी या संतरे के छिलकों को पीसकर, मलाई मिलाकर उबटन लगाने से त्वचा मुलायम व साफ होती है।

एक चम्मच मलाई में एक चम्मच सेब का रस मिलाकर, फेंटकर, हल्के हाथ से चेहरे पर मलने से कुछ ही दिनों में रंग साफ होने लगता है।

खांसी की समस्या हो तो आधी कटोरी मलाई में एक चम्मच नारियल का बुरा, पांच बड़ी इलायची का पावडर तथा दस काली मिर्च दरदरी पीसकर, धीमी आंच पर चलाकर गर्म कर लें। सोने से पहले रोगी को गर्म-गर्म ही दें। कुछ दिन इसका सेवन करने से खुश्क खांसी ठीक हो जाती है।

कांसे या पीतल की थाली में दो चम्मच ताजी मलाई को थोड़ा सा पानी डालकर खूब फेंट लें। मलाई फूलकर मक्खन जैसी हो जाएगी। इसमें एक डली कपूर की पीसकर मिलाएं। फोड़े-फुंसी आदि पर यह लेप लगाने से लाभ होता है।

इसी कपूर मिले मक्खन को छोटे बच्चों के सिर के बीचोंबीच रखकर हल्के हाथ से मालिश करें। इससे खोपड़ी मजबूत होती है और गर्मियों में ठंडक भी पहुंचती है।

‪‎योगासन‬: - ‎कुर्सी‬ योगा‬














‪‎योगासन‬: - ‎कुर्सी‬ योगा‬

कुर्सी योगा, योगा का ही एक प्रकार है जो कि कुर्सी पर बैठ कर किया जाता है। कुर्सी योगा कई घंटों तक ऑफिस में बैठकर काम करने वालों के लिए बहुत ही उपयोगी है।

कुर्सी योगा करने का तरीका –

हाथ और भुजाओं के लिए -
- सबसे पहले कुर्सी पर सीधे होकर बैठ जाइए। उसके बाद सांस को अंदर खींचते हुए अपने कानों की सीध में हाथों को आगे की ओर ले जाकर कसकर पकड लीजिए।
- अपने कंधों को एक दूसरे की विपरीत दिशा में दबाव दीजिए। दबाव इतना हो कि आपके कंधों और सीने में खिंचाव महसूस हो।
- इस क्रिया को कम से कम 5 बार दोहराईए। यह ध्यान रहे कि सांसों को गहराई से अंदर-बाहर कीजिए।

फायदा –
- हाथों को आराम मिलता है। गर्दन का दर्द समाप्त होता है।
- सिर, गले और हाथों में खून का संचार बढता है।
- इससे कंप्यूटर पर लगातार काम करने वालों की उंगली को राहत मिलती है।

पसली में खिंचाव (साइड स्ट्रेच) के लिए -
- कुर्सी पर सीधे बैठकर, सबसे पहले अपने दाहिने हाथ को सिर के ऊपर की तरफ ले जाइए।
- आराम से गहरी सांस लीजिए।
- बाएं हाथ को कमर पर रखकर दबाव डालिए।
- सांसों को बाहर करते हुए दाहिने हाथ को बाएं हाथ की तरफ ले जाइए।
- इस स्थिति में 3 से 5 बार गहरी सांस लीजिए। उसके बाद सामान्य स्थिति में आ जाइए।
- अगर दाहिने पसली में दर्द है तो यही क्रिया बाएं हाथ से कीजिए।

फायदा -
- इस क्रिया से सीना, कंधा, रीढ की हड्डी को आराम मिलता है।
- यह योगा तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करता है, जिससे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।

रीढ की हड्डी में खिंचाव के लिए -
- कुर्सी पर सीधे होकर बैठ जाइए। अब अपने दाहिने पैर को बाएं पैर के ऊपर रख लीजिए।
- अब अपने बाएं हाथ को बाएं पैर के घुटने के नीचे रख लीजिए।
- गहरी सांस लेते हुए अपने बांए हाथ को सिर पर रखिए।
- अब सिर को दाहिनी भुजा की तरफ दबाइए। इस क्रिया को दाहिने हाथ से भी कीजिए।
- 3 से 5 बार इस क्रिया को दोहराइए।

फायदा -
- इस योगा को करने से रीढ की हड्डी का दर्द और तनाव समाप्त होता है।
- यह योगा तंत्रिका तंत्र को आराम देता है।
कुर्सी योगा करने के कई फायदे हैं। इस आसन को कम समय और काम के साथ शरीर को तनाव और दर्द से छुटकारा देने के लिए किसी भी वक्त किया जा सकता है। ऑफिस में ज्यादा देर तक बैठकर काम करने वालों के लिए इस आसन का अभ्यास करना बहुत ही फायदेमंद होता है।

योगासन‬: व्‍याघ्रासन











योगासन‬: व्‍याघ्रासन

इस आसन को करते समय आपकी स्थिति बाघ के समान होती है इसलिए इस आसन को व्याघ्रासन कहते हैं। इस आसन से आपकी कमर की मांसपेशियों व मेरुदंड की अच्छी एक्सरसाइज होती है। आमतौर पर दिन भर कंप्यूटर के सामने बैठकर आपको कमर दर्द की समस्या होती है। ऐसे में इस आसन को करने से आपका मेरुदंड मजबूत होता है और कमर दर्द की समस्या से छुटकारा मिलता है। योगासन से आपको तनाव से तो मुक्ति मिलती ही है साथ ही आप जो भी काम कर रहे हैं उसमें एकाग्रता बढती है।

व्‍याघ्रासन की विधि
- सबसे पहले वज्रासन की अवस्था में बैठें। अब अपने दोनों घुटनों के बल खड़े हो जाइए और अपने दोनों हाथों को आगे की तरफ रखिए।
- इस अवस्था में अब अपने दाहिने पैर को पीछे उठा कर सिर की तरफ लाइए, सांस अंदर की ओर लीजिए।
- अपने सिर को आगे की तरफ झुकाइए। फिर अपनी नाक को घुटने से लगाएं और सांस धीरे-धीर छोड़ दे।
- अब सिर ऊपर की ओर उठाएं और पांव पीछे की तरफ ले जाएं।
- अब इस प्रकिया को बाएं पैर को ऊपर की तरफ ले जाते हुए दोहराएं। इस प्रकिया को कम से कम पांच बार करें।

व्‍याघ्रासन के लाभ
- सुबह-सुबह व्याघ्रासन करने से आपकी एकाग्रता बढ़ती है और तनाव से मुक्ति मिलती है।
- इस आसन से साइटिका की बीमारी या कमर के निचले हिस्से में दर्द की समस्या से छुटकारा मिलता है।
- शरीर में नर्वस सिस्टम की ठीक होना बहुत जरुरी है, नहीं तो आप अच्छा महसूस नहीं करेंगे। इस आसन से आपका नर्वस सिस्टम सुचारु रुप से काम करता है।
- डॉक्टर महिलाओं को डिलवरी के बाद व्याघ्रासन करने की सलाह देते हैं। इससे उनमें प्रजनन अंगो की कोई समस्या नहीं होती है।
- इस आसन से आपकी पाचन शक्ति ठीक रहती है।
- इस आसन में पेट की मांसपेशियों का खिंचाव होता है। इसलिए इसे पेट के लिए अच्छी कसरत मानते हैं।
- पेट व जांघ की चर्बी को कम करने के लिए यह एक अच्छा योग है।
रोजाना इस आसन से शरीर में रक्त का प्रवाह ठीक से होता है।

सावधानियां
- अगर आपके गर्दन, पीठ व घुटने में किसी तरह की चोट या दर्द हो तो इस आसन को नहीं करना चाहिए।
- इस आसन को करने के लिए किसी समतल स्थान पर मोटा कंबल या दरी बिछाए, क्योंकि आसन के दौरान आपके शरीर का पूरा भार आपके घुटनों पर होता है।

योगमुद्रासन










योगमुद्रासन : 
विधि और लाभ

योग का अर्थ होता हैं जागरूकता (awareness) और मुद्रा का अर्थ होता हैं दृढ़ (Seal) करना। यह आसन करने से अभ्यासक की जागरूकता और दृढ़ हो जाती है और एकाग्रता बढ़ती है और इसी कारण इसे योगमुद्रासन यह नाम दिया गया हैं। योगमुद्रासन को अंग्रेजी में The Psychic Union Pose कहा जाता हैं।
ऐसे तो नाम सुनकर यह एक योग मुद्रा लगती है पर इसका समावेश योग आसन में किया जाता हैं। शुरुआत में योगमुद्रासन करने के लिए कठिन है पर अभ्यास के साथ एक बार इसमें पारंगत हो जाने पर अभ्यासक को इससे अनेक लाभ होते हैं।

योगमुद्रासन की विधि, लाभ और सावधानी संबंधी अधिक जानकरी निचे दी गयी हैं :

योगमुद्रासन : विधि और लाभ 

योगमुद्रासन विधि
सबसे पहले एक स्वच्छ और समतल जगह पर एक दरी या चटाई बिछा दे। 
अब पद्मासन में बैठ जाए। पद्मासन संबंधी जानकारी के लिए यह पढ़े - पद्मासन योग 
अब पीठ के पीछे एक हाथ से दुसरे हाथ की कलाई को पकड़ लें। 
शरीर को शिथिल करे। 
अब शरीर को धीरे-धीरे सामने झुकाते हुए अपना माथा (Forehead) जमीन से लगाने का प्रयास करें। सामने की और झुकते समय श्वास छोड़ना हैं। 
सामने की ओर झुकते समय कमर और नितंब को उपर नहीं उठाना हैं। 
कुछ क्षण तक इस स्तिथि में रुककर धीरे-धीरे पूर्व स्तिथि में आकर बैठ जाए। पूर्व स्तिथि में आते समय श्वास अंदर लेना हैं। 
इसके अलावा आप हात पीठ के पीछे रखने की जगह हात नाभि पर रखकर भी योगमुद्रा आसन कर सकते हैं। अपना दाहिने हात (Right Hand) का पंजा पेट के उपर नाभि पर रखे और बाया हात (Left Hand) दाहिने हात के ऊपर रखकर आगे की ओर झुककर योगमुद्रासन कर सकते हैं। 

योगमुद्रा के लाभ 
योगमुद्रा से वह सभी लाभ प्राप्त होते है जो की पद्मासन करने पर मिलते हैं। 
रीढ़ की हड्डी अधिक लचीली और मजबूत बनती हैं। 
पीठ, कमर और पेट के स्नायु मजबूत होते हैं। 
कब्ज (Constipation), अपचन (Indigestion) और पाचन संबंधी रोग को दूर करता हैं। 
यह अग्नाशय (Pancreas) की कार्यक्षमता बढाकर Insulin की निर्मिती बढाता हैं जिससे मधुमेह के रोगियों में लाभ होता हैं। 
योगमुद्रासन करने से पेट पर जमी अतिरिक्त चर्बी कम करने में मदद मिलती है। मोटापा से पीड़ित लोगो के लिए यह उपयोगी हैं। 
एकाग्रता और आत्मविश्वास में वृद्धि होती हैं। 

योगमुद्रा करते समय क्या सावधानी बरतनी चाहिए ?
योगमुद्रा करते समय वह सभी सावधानी बरतनी चाहिए जो पद्मासन करते समय बरती जाती हैं। अगर पद्मासन करते समय कष्ट या तनाव महसूस होता हैं तो सुखासन में बैठ कर योगमुद्रा आसन करना चाहिए। 
योगमुद्रासन अपने क्षमतानुसार ही करना चाहिए। क्षमता से अधिक प्रयत्न करने पर हानि पहुच सकती हैं। 
उच्च रक्तचाप, हर्निया, गर्भावस्था, साइटिका से पीड़ित व्यक्तिओ ने यह आसन नहीं करना चाहिए। किसी रोग से पीड़ित होने पर अपने डॉक्टर की सलाह लेकर ही यह योग करे। 
योग का समय अभ्यास के साथ धीरे-धीरे बढाए। 
योगमुद्रासन यह सामने की ओर झुककर किया जानेवाला आसन है इसलिए मेरुदंड को अधिक लचीला बनाने के लिए यह आसन करने के उपरांत पीछे की ओर झुककर किया जानेवाला आसन किया जाना चाहिए जैसे की शलभासन, भुजंगासन, धनुरासन इत्यादि। योगमुद्रासन का नियमित अभ्यास करने से कुण्डलिनी जागरूक की जा सकती हैं। योग करते समय किसी भी प्रकार की समस्या आने पर योग विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए।

पीरियड का दर्द















पीरियड का दर्द

क्या महीने के वो दिन आपके लिए भी किसी बुरे सपने की तरह होते हैं? कई औरतों को महीने के उन दिनों में बहुत अधिक तकलीफ से गुजरना पड़ता है. दर्द के साथ ही कई महिलाओं में चिड़चिड़ापन भी आ जाता है. ये सब कुछ हॉर्मोनल बदलाव की वजह से होता है. कई बार समस्या इतनी अधिक हो जाती है और दर्द इस कदर बढ़ जाता है कि उसे बर्दाश्त कर पाना असंभव हो जाता है.

हालांकि बाजार में कई ऐसी दवाइयां मौजूद हैं जिन्हें लेने से दर्द कम हो जाता है लेकिन खुद डॉक्टर्स भी इन्हें सुरक्षित नहीं मानते हैं. ऐसे में दवाइयां लेना कई बार नुकसानदेह भी साबित हो सकता है. दवाइयों के सेवन से कई बार पीरियड्स डिस्टर्ब हो जाता है और कई तरह की दूसरी हॉर्मोनल समस्याएं हो जाती हैं.

कई ऐसे घरेलू उपाय हैं जिन्हें आजमाकर पीरियड्स के दर्द को कम किया जा सकता है. इन छोटे-छोटे उपायों को महीनेभर करने से पीरियड्स के दौरान दर्द से राहत पाई जा सकती है. अच्छी बात यह है कि इनके इस्तेमाल से किसी प्रकार का साइड-इफेक्ट नहीं होता है.

1. सप्लीमेंट्स लेती रहें
महिलाओं को नियमित तौर पर कैल्शियम और मैग्नीशियम सप्लीमेंट लेते रहना चाहिए. ये दोनों ही तत्व मांसपेशियों को आराम पहुंचाने में मददगार होते हैं. हर महिला को अपने शरीर के अनुसार कैल्शियम और मैग्नीशियम की मात्राकी आवश्यकता होती है. ऐसे में डॉक्टर से परामर्श लेकर इन सप्लीमेंट्स का सेवन करें.

2. चाय पीने से भी मिलती है राहत
हालांकि पीरियड्स के दौरान ग्रीन-टी पीना भी फायदेमंद रहता है लेकिन अगर आपको रसभरी की पत्तियां मिल जाएं तो उससे बेहतर कुछ भी नहीं. रसभरी कर पत्तियों की चाय पूरे महीने पीना फायदेमंद होता है. इससे पीरियड्स के दौरान कम दर्द होता है.

3. हरी सब्जियों का सेवन
हरी शाक-सब्जियों में पर्याप्त मात्रा में मैग्नीशियम पाया जाता है. साथ ही इनमें कैल्शियम और भारी मात्रा में माइक्रोन्यूट्रीएंट्स भी होते हैं. ये सभी तत्व मांसपेशियों को रीलैक्स रहने में मदद करते हैं.

4. हीटिंग पैड का इस्तेमाल
अगर आपको पीरियड्स के दौरान बहुत अधिक दर्द होता है तो इस दौरान अपने पास एक हीटिंग पैड जरूर रखें. इससे मांसपेशियों का खिंचाव कम हो जाता है.

5. एक्यूपंचर भी है एक उपाय 
कई ऐसे एक्यूपंचर प्वाइंट होते हैं जिन पर प्रेशर डालने से ब्लड-फ्लो रेग्युलेट होता है. इस उपाय से भी पीरियड्स के दर्द में राहत मिलती है. 

6. पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द में
जिन महिलाओं को पीरियड्स के दौरान दर्द की शिकायत होती है उन्हें पपीते का सेवन करना चाहिए. पपीते के सेवन से एक ओर जहां पीरियड साइकिल नियमित रहता है वहीं दर्द में भी आराम मिलता है.

मानसिक दु:ख (Melancholia or Depression)










मानसिक दु:ख (Melancholia or Depression)

परिचय-
मानसिक दु:ख से पीड़ित रोगी अपने सामाजिक और दैनिक जिम्मेदारियों के प्रति उदास रहता है और उसे इससे अरुचि होने लगती है। इस कारण से उसकी जीवन शैली एकदम बदल जाती है, मानसिक व भावनात्मक दबाव होने लगता है।

कारण :-
कई प्रकार की औषधियों के दुष्प्रभाव के कारण से मानसिक दु:ख उत्पन्न होता है।
किसी प्रकार के संक्रामक रोग जैसे फ्लू या टायफायड, टी.बी. या एड्स आदि कारण से भी यह उत्पन्न हो सकता है।
अंत-स्त्रावी ग्रंथि में किसी प्रकार से बदलाव उत्पन्न होने के कारण से उसके द्वारा उत्पन्न हार्मोन्स में गड़बड़ी होने के कारण से मानसिक आघात होता है।
किसी प्रकार से अचानक घटना घट जाने के कारण से यह रोग उत्पन्न हो सकता है।

लक्षण :-
मानसिक दु:ख से पीड़ित रोगी अधिक निराशावादी और उदासीन हो जाता है। उसके मन में अपने को बेकार व लाचार मानने की भावना उत्पन्न होती है। वह अपने को दोषी मानने लगता है। उसे चिड़ड़ाहट, घबराहट तथा उत्तेजना होती है। अक्सर जोर से रोने का मन करता है। दैनिक क्रियाओं को करने में उसका मन नहीं लगता है। उसके सोचने की शक्ति तथा एकाग्रता कम हो जाती है। नींद भी ठीक से नहीं आती है। शरीर का वजन घटने या बढ़ने लग जाता है। शरीर की शक्ति भी कम हो जाती है। किसी भी कार्य को करने से जल्दी थकावट उत्पन्न होती है। मन में आत्महत्या करने का विचार उत्पन्न होता रहता है।

मानसिक दु:ख होने पर क्या करें और कया न करें :-
1) रोगी को अपने रोग का उपचार कराने के लिए किसी अच्छे
2) चिकित्सक से मिलना चाहिए और उसके सलाह के अनुसार ही कार्य करना चाहिए।
3) रोगी को अपने आप मानसिक दु:ख को खत्म करने की दवाईयां नहीं लेनी चाहिए।
4) प्रतिदिन सुबह तथा शाम के समय में योग, व्यायाम तथा ध्यान करना लाभदायक है।
5) कोई भी ऐसे शब्द का उचारण करे जिससे शांति मिले जैसे ओम्..ओम् या अपने ईश्वर को याद करने का अन्य शब्द आदि।
6) रोगी को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए।
7) जब रोग के लक्षण उत्पन्न हो तब आंखों को बंद करके शान्त बैठे, इससे लाभ मिलेगा।
8) ताजे फल, विटामिन बी काम्प्लेक्स व सैलेनियम का सेवन करें।
9) कार्बोहायड्रेट का भी सेवन करें इससे मानसिक दु:ख को दूर करने में मदद मिलेगी।
10) किसी भी काम को करने में अपने आप को लगाए इससे दु:ख से छुटकारा पाने में सहायता मिलेगा।
11) दिमाग को व्यस्त रखने के लिए कोई उचित मानसिक कार्य करें।
सदा पौष्टिक और संतुलित आहार करें।
12) रोगी के इस रोग को दूर करने के लिए सबसे पहले इसके होने कारणों का पता लगाए इसके बाद उपचार करें।
13) अपने समस्याओं को अपने किसी साथी या सगे सम्बंधी को बताए, हो सकता है कि वे कुछ आपकी मदद कर सकें।
14) अपने दु:ख को किसी दूसरे को बताने से कुछ दु:ख तो अपने आप ही दूर हो जाता है

आयुर्वेदिक चूर्ण











आयुर्वेदिक चूर्ण :-

आयुर्वेद के कुछ महत्वपूर्ण व कारगर चूर्ण की जानकारी दी जा रही है, जरुरत के हिसाब से इन्हें घर पर रखिये, क्योंकि आपातकाल में अन्य परिस्तिथतियों में हमारे दैनिक जीवन में बहुत उपयोगी हैं।

अश्वगन्धादि चूर्ण :- धातु पौष्टिक, नेत्रों की कमजोरी, प्रमेह, शक्तिवर्द्धक, वीर्य-वर्द्धक, पौष्टिक तथा बाजीकर, शरीर की झुर्रियों को दूर करता है। मात्रा 5 से 10 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।

अविपित्तकर चूर्ण :- अम्लपित्त की सर्वोत्तम दवा। छाती और गले की जलन, खट्टी डकारें, कब्जियत आदि पित्त रोगों के सभी उपद्रव इससे शांत होते हैं। मात्रा 3 से 6 ग्राम भोजन के साथ।

अष्टांग लवण चूर्ण :- स्वादिष्ट तथा रुचिवर्द्धक। मंदाग्नि, अरुचि, भूख न लगना आदि में विशेष लाभकारी। मात्रा 3 से 5 ग्राम भोजन के पश्चात या पूर्व। थोड़ा-थोड़ा खाना चाहिए।

आमलकी रसायन चूर्ण :- पौष्टिक, पित्त नाशक व रसायन है। नियमित सेवन से शरीर व इन्द्रियां दृढ़ होती हैं। मात्रा 3 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।

आमलक्यादि चूर्ण :- सभी ज्वरों में उपयोगी, दस्तावर, अग्निवर्द्धक, रुचिकर एवं पाचक। मात्रा एक से 3 गोली सुबह व शाम पानी से।

जातिफलादि चूर्ण :- अतिसार, संग्रहणी, पेट में मरोड़, अरुचि, अपचन, मंदाग्नि, वात-कफ तथा सर्दी-जुकाम को नष्ट करता है। मात्रा 1.5 से 3 ग्राम शहद से।

दाडिमाष्टक चूर्ण :- स्वादिष्ट एवं रुचिवर्द्धक। अजीर्ण, अग्निमांद्य, अरुचि गुल्म, संग्रहणी, व गले के रोगों में। मात्रा 3 से 5 ग्राम भोजन के बाद।

चातुर्भद्र चूर्ण :- बच्चों के सामान्य रोग, ज्वर, अपचन, उल्टी, अग्निमांद्य आदि पर गुणकारी। मात्रा 1 से 4 रत्ती दिन में तीन बार शहद से।

चोपचिन्यादि चूर्ण :- उपदंश, प्रमेह, वातव्याधि, व्रण आदि पर। मात्रा 1 से 3 ग्राम प्रातः व सायं जल अथवा शहद से।

पुष्यानुग चूर्ण :- स्त्रियों के प्रदर रोग की उत्तम दवा। सभी प्रकार के प्रदर, योनि रोग, रक्तातिसार, रजोदोष, बवासीर आदि में लाभकारी। मात्रा 2 से 3 ग्राम सुबह-शाम शहद अथवा चावल के पानी में।

पुष्पावरोधग्न चूर्ण :- स्त्रियों को मासिक धर्म न होना या कष्ट होना तथा रुके हुए मासिक धर्म को खोलता है। मात्रा 6 से 12 ग्राम दिन में तीन समय गर्म जल के साथ।

यवानिखांडव चूर्ण :- रोचक, पाचक व स्वादिष्ट। अरुचि, मंदाग्नि, वमन, अतिसार, संग्रहणी आदि उदर रोगों पर गुणकारी। मात्रा 3 से 6 ग्राम।

लवणभास्कर चूर्ण :- यह स्वादिष्ट व पाचक है तथा आमाशय शोधक है। अजीर्ण, अरुचि, पेट के रोग, मंदाग्नि, खट्टी डकार आना, भूख कम लगना। आदि अनेक रोगों में लाभकारी। कब्जियत मिटाता है और पतले दस्तों को बंद करता है। बवासीर, सूजन, शूल, श्वास, आमवात आदि में उपयोगी। मात्रा 3 से 6 ग्राम मठा (छाछ) या पानी से भोजन के पूर्व या पश्चात लें।

लवांगादि चूर्ण :- वात, पित्त व कफ नाशक, कंठ रोग, वमन, अग्निमांद्य, अरुचि में लाभदायक। स्त्रियों को गर्भावस्था में होने वाले विकार, जैसे जी मिचलाना, उल्टी, अरुचि आदि में फायदा करता है। हृदय रोग, खांसी, हिचकी, पीनस, अतिसार, श्वास, प्रमेह, संग्रहणी, आदि में लाभदायक। मात्रा 3 ग्राम सुबह-शाम शहद से। 

व्योषादि चूर्ण : श्वास, खांसी, जुकाम, नजला, पीनस में लाभदायक तथा आवाज साफ करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम सायंकाल गुनगुने पानी से।

शतावरी चूर्ण : धातु क्षीणता, स्वप्न दोष व वीर्यविकार में, रस रक्त आदि सात धातुओं की वृद्धि होती है। शक्ति वर्द्धक, पौष्टिक, बाजीकर तथा वीर्य वर्द्धक है। मात्रा 5 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।

स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण (सुख विरेचन चूर्ण) :- हल्का दस्तावर है। बिना तकलीफ के पेट साफ करता है। खून साफ करता है तथा नियमित व्यवहार से बवासीर में लाभकारी। मात्रा 3 से 6 ग्राम रात्रि सोते समय गर्म जल अथवा दूध से।

सारस्वत चूर्ण :- दिमाग के दोषों को दूर करता है। बुद्धि व स्मृति बढ़ाता है। अनिद्रा या कम निद्रा में लाभदायक। विद्यार्थियों एवं दिमागी काम करने वालों के लिए उत्तम। मात्रा 1 से 3 ग्राम सुबह शाम दूध से।

सितोपलादि चूर्ण :- पुराना बुखार, भूख न लगना, श्वास, खांसी, शारीरिक क्षीणता, अरुचि जीभ की शून्यता, हाथ-पैर की जलन, नाक व मुंह से खून आना, क्षय आदि रोगों की प्रसिद्ध दवा। मात्रा 1 से 3 गोली सुबह-शाम शहाद से।

सुदर्शन (महा) चूर्ण :- सब तरह का बुखार, इकतरा, दुजारी, तिजारी, मलेरिया, जीर्ण ज्वर, यकृत व प्लीहा के दोष से उत्पन्न होने वाले जीर्ण ज्वर, धातुगत ज्वर आदि में विशेष लाभकारी। कलेजे की जलन, प्यास, खांसी तथा पीठ, कमर, जांघ व पसवाडे के दर्द को दूर करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ।

सैंधवादि चूर्ण :- अग्निवर्द्धक, दीपन व पाचन। मात्रा 2 से 3 ग्राम प्रातः व सायंकाल पानी अथवा छाछ से।

हिंग्वाष्टक चूर्ण :- पेट की वायु को साफ करता है तथा अग्निवर्द्धक व पाचक है। अजीर्ण, मरोड़, ऐंठन, पेट में गुड़गुड़ाहट, पेट का फूलना, पेट का दर्द, भूख न लगना, वायु रुकना, दस्त साफ न होना, अपच के दस्त आदि में पेट के रोग नष्ट होते हैं तथा पाचन शक्ति ठीक काम करती है। मात्रा 3 से 5 ग्राम घी में मिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।

त्रिकटु चूर्ण :- खांसी, कफ, वायु, शूल नाशक, व अग्निदीपक। मात्रा 1/2 से 1 ग्राम प्रातः-सायंकाल शहद से।

त्रिफला चूर्ण : कब्ज, पांडू, कामला, सूजन, रक्त विकार, नेत्रविकार आदि रोगों को दूर करता है तथा रसायन है। पुरानी कब्जियत दूर करता है। इसके पानी से आंखें धोने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। मात्रा 1 से 3 ग्राम घी व शहद से तथा कब्जियत के लिए 5 से 10 ग्राम रात्रि को जल के साथ।

श्रृंग्यादि चूर्ण : बच्चों के श्वास, खांसी, अतिसार, ज्वर में। मात्रा 2 से 4 रत्ती प्रातः-सायंकाल शहद से।

अजमोदादि चूर्ण : जोड़ों का दुःखना, सूजन, अतिसार, आमवात, कमर, पीठ का दर्द व वात व्याधि नाशक व अग्निदीपक। मात्रा 3 से 5 ग्राम प्रातः-सायं गर्म जल से अथवा रास्नादि काढ़े से।

अग्निमुख चूर्ण (निर्लवण) : उदावर्त, अजीर्ण, उदर रोग, शूल, गुल्म व श्वास में लाभप्रद। अग्निदीपक तथा पाचक। मात्रा 3 ग्राम प्रातः-सायं उष्ण जल से।

माजून मुलैयन : हाजमा करके दस्त साफ लाने के लिए प्रसिद्ध माजून है। बवासीर के मरीजों के लिए श्रेष्ठ दस्तावर दवा। मात्रा रात को सोते समय 10 ग्राम दूध के साथ।

हाई यूरिक एसिड को कंट्रोल करने के डाईट टिप्स














हाई यूरिक एसिड को कंट्रोल करने के डाईट टिप्स ::

क्या आपको हर समय उंगलियों की हड्डियों में हल्का-हल्का दर्द रहता है? इसका मतलब है कि आपके शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ रही है। शरीर में यूरिक एसिड, प्यूरिन का एक ब्रेकडाउन प्रोडक्ट है। सामान्य कोशिकाओं के टूटने और खाएं जाने वाले खाद्य पदार्थो से शरीर में प्यूरिन मौजूद रहता है। उच्च यूरिक एसिड को नियंत्रित करने के उपाय
अगर आपको भी हाई यूरिक एसिड की शिकायत है तो आपके लिए एक खुशखबरी है, अगर आप अपने खाने-पीने के तरीके में थोड़ा सा बदलाव कर लें, तो आपको इस समस्या से निजात मिल सकती है। प्रॉपर डाईट चार्ट बनाएं और उसे फॉलो करे। कुछ प्वाइंट को हमेशा ध्यान में रखें और नियमित इनका पालन करें। हाई यूरिक एसिड की दिक्कत होने पर क्या-क्या खाना चाहिये

1) तरल पदार्थो का सेवन करें
हाई यूरिक एसिड होने पर ज्यादा से ज्यादा लिक्विड लें। इससे शरीर के विषाक्त पदार्थ पेशाब के रास्ते बाहर निकल जाते है और शरीर की अन्य गंदगी भी साफ हो जाती है। एक दिन में कम से कम तीन लीटर पानी पिएं।

2) हाई-फाइबर फूड
हाई-फाइबर फूड को खाने से शरीर में बढ़ा हुआ यूरिक एसिड घट जाता है और संतुलित हो जाता है। इसे खाने से यूरिक एसिड की मात्रा अवशोषित हो जाती है और बाकी के विषाक्त पदार्थ यूरिन के रास्ते बाहर निकल जाते है। तरबूज और दलिया जैसे पदार्थ भी इसमें सहायक होते है।

3) चेरी
हाई यूरिक एसिड की शिकायत होने पर चेरी का सेवन फायदेमंद होता है। इसके सेवन से ब्लॉकेज खुल जाते है और यूरिक एसिड भी कम हो जाता है। चेरी के सेवन से जेनॉक्सथाइन ऑक्सीडेस भी ब्लॉक हो जाता है जिससे यूरिक एसिड की मात्रा नियंत्रित हो जाती है।

4) ब्रोकली
ब्रोकली में फाइबर भरपूर मात्रा में होते है। इसमें विटामिन सी भी काफी अच्छी मात्रा में पाया जाता है। इसे फूड चार्ट में अवश्य शामिल करें। इसके सेवन से शरीर यूरिक एसिड की मात्रा कम हो जाती है।

5) बेकरी फूड
अगर शरीर में यूरिक एसिड हाई हो, तो कभी भी बेकरी प्रोडक्ट नहीं खाने चाहिये। इनमें सेच्युरेटेड फैट होता है जिससे शरीर में हाई यूरिक एसिड हो जाता है, क्योंकि इनमें प्रीर्जवेटिव मिला होता है। केक, पैनकेक, पेस्ट्री आदि खाने से बचें।

6) मछली और मीट
हाई यूरिक एसिड की शिकायत होने पर मछली और मीट को न खाएं। कुछ विशेष प्रकार की मछली जैसे- सारडिनेस और मैकीरिल को कतई न खाएं।

7) एल्कोहल न लें
शरीर में एल्कोहल पहुंचने पर हाई यूरिक एसिड हो जाता है। अगर लगातार एल्कोहल का सेवन किया जाएं, तो शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है और कई बार गाउट अटैक आ जाता है।

आकास्मिक रोगों को इलाज















आकास्मिक रोगों को इलाज

आकास्मिक रोग(emergency problems) व घटनाएं कभी बताकर नहीं आते हैं। इसलिए आपको इस बात की जानकारी रखना जरूरी है जिससे समय पर इंसान का उपचार हो जाए और अस्पताल ले जाने तक का समय मिल सके। एैसे में आपको बेहद सावधान और धैर्य रखना चाहिए। आकास्मिक रोग व घटनाएं जैसे अंग कटना, कांच निगलना, मोच आना, नाक में कुछ फंस जाना, आग से अंग का जलना आदि प्रमुख घटनाएं हैं। वैदिकवाटिका आपको इस तरह की आकास्मिक घटनाओं में कैसे आयुर्वेदिक प्राथमिक उपचार किया जाए। इस बात की पूरी जानकारी दे रही है।

आकास्मिक रोगों को इलाज(emergency treatment in hindi)

मोच‬ आना
दो चम्मच जीरा को 1 गिलास पानी में डालकर गर्म कर लें। फिर इस पानी से मोच वाली जगह पर कपड़े से सिकाई करें। एैसा करने से आपको मोच के दर्द से निजात मिलेगा।

‎चोट‬ या खरोच लगने पर
• चोट या खरोच लगने पर प्याज का टुकड़ा खरोच वाली जगह लगाने से सूजन व चोट में आराम मिलता है।
• नमक के गर्म पानी से चोट वाली जह पर सिकाई करने से सूजन उतर जाती है।

‎अंग‬ के जलने पर
आग से यदि कोई अंग जल गया हो तो एैसे में जले स्थान पर ग्लिसरीन लगा दें। इससे जली हुई जगह पर छाले नहीं पड़ते और जलन भी कम हो जाती है।
दूसरा उपचार है यदि शरीर का कोई अंग आग से झुलस गया हो तो तुरंत सरसों का तेल लगा लें। इससे शरीर पर न तो जले का निशान बनेगा और न ही छाला पड़ेगा।

‎नाक‬ में कोई चीज फसना
यदि नाक में कोई चीज चली गई हो या फंस गई हो तो एैसे में घबराएं नहीं तुरंत तंबाकू को पीसकर सूंघे । एैसा करने से छीके आने लगती है और नाक में फंसी चीज अपने आप बाहर आ जाती है।

‎खट्टी‬ डाकार आना
गुड और सेंधा नमक को आपस में मिलाकर चाटने से खट्टी डकारें बंद हो जाती हैं।

कांच‬ खाने व कांच चुभने पर उपाय
• यदि गलती से किसी ने कांच खा लिया हो तो घबराएं नहीं। एैसे में उसे उबले आलू खिलाएं। या पेट भर दही का सेवन करा दें।
• इसबगोल की 12 ग्राम भुस्सी को गर्म दूध के साथ उस इंसान को खिला दें।
• गुड और अजवाइन को हल्का गरम करके कांच चुभने वाले स्थान पर लगाने से कांच खुद बाहर आ जाता है।
• देशी शहद में राई को मिलाकर कांच चुभने वाली जगह पर लेप लगाने से कांच बाहर आ जाता है।
• कांटा चुभने पर हींग को घोलकर लगाने से वह वस्तु सरलता से बाहर आ जाती है।

अंग का कटना
यदि कटने में खून निकलना बंद न हो रहा हो तो एैसे में कटे स्थान पर आंवले का रस लगाने से राहत मिलती है। और खून बहना बंद हो जाता है।
कटने पर खून को बहने से रोकने के लिए किसी कपड़े को मिट्टी के तेल में भिगोकर कटे स्थान बांधने से खून आना बंद हो जाता है।
बर्फ के टुकड़े या बर्फ के पानी की पट्टी बांधने से भी कटे स्थान से खून आना बंद हो जाता है।